
श्री आनदंपुर साहिब में शुरू हुआ “होला मोहल्ला ” , आइये जानते हैं इस पवित्र त्यौहार की खासियत
होला मोहल्ला (पंजाब 365 न्यूज़ ) : पंजाब के खास त्योहारों की बात आये और इसमें होला मोहल्ला का नाम न शामिल हो इसका तो सवाल ही पैदा नहीं होता है। शब्द “मोहल्ला” अरबी मूल हल (उतराई, अवरोही) से लिया गया है और एक पंजाबी शब्द है जिसका अर्थ सेना के स्तंभ के रूप में एक संगठित जुलूस है। लेकिन होली के विपरीत, जब लोग एक दूसरे पर रंग बिरंगे रंग छिड़कते हैं, सुखाते हैं या पानी में मिलाते हैं, तो गुरु ने होला मोहल्ला को सिखों के लिए नकली युद्ध में अपने मार्शल कौशल का प्रदर्शन करने का अवसर बनाया। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने होली मनाने की इस पद्धति का निर्माण एक मार्शल तत्व को जोड़ने और होली के एक दिन बाद होला मोहल्ला बनाने के लिए किया। त्यौहार की जड़ें बाल भगत, प्रह्लाद की कहानी में भी हैं, जो अपने पिता, हरनाक्श को भगवान के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे।

पंजाब के खास पर्वों में शामिल होला मोहल्ला का बुधवार को पांच नगाड़े बजाकर आगाज किया गया। किला आनंदगढ़ साहिब में पांच पुरातनी नगाड़े बजाए गए। यह पर्व 24, 25 और 26 मार्च को श्री कीरतपुर साहिब में मनाया जाएगा। इसके बाद 27, 28 और 29 मार्च को श्री आनंदपुर साहिब में पर्व का आयोजन होगा। 29 मार्च को मोहल्ला निकाला जाएगा। छह दिन तक चलने वाले इस पर्व में लाखों की संख्या में संगत नतमस्तक होगी और मोहल्ला निकालने के दौरान रंग उड़ाया जाएगा और निहंग सिंह घुड़सवारी तथा गतके के जौहर दिखाएंगे। सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की संरचना के बाद होला मोहल्ला का पर्व मनाने की शुरुआत की थी। एक बनावटी युद्ध के बाद इस पर्व की शुरुआत हुई थी। होला मोहल्ला में बिना शारीरिक क्षति पहुंचाए युद्ध के जौहर दिखाए जाते हैं।
एक साथ वाक्यांश “होला मोहल्ला” का अर्थ “मॉक फाइट” है। इस त्योहार के दौरान, युद्ध-ड्रम, मानक-वाहक के साथ सेना के प्रकार के कॉलम के रूप में जुलूस आयोजित किए जाते हैं, जो किसी दिए गए स्थान पर जाते हैं या राज्य में एक गुरुद्वारे से दूसरे में जाते हैं। यह प्रथा गुरु गोबिंद सिंह के समय में उत्पन्न हुई, जिन्होंने फरवरी 1701 में आनंदपुर में इस तरह का पहला मॉक फाइट इवेंट आयोजित किया था।

पिछले 20 वर्षों से अधिक समय से सिखों के अंतिम दो मानव गुरुओं का निवास स्थान रहा है, आनंदपुर साहिब, होला महल्ला उत्सव सहित सिख इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी था, जो एक वार्षिक विशेषता है। त्योहार अब अपने मूल सैन्य महत्व को खो दिया है, लेकिन बड़ी संख्या में सिख आज भी आनंदपुर साहिब में इकट्ठा होते हैं और एक प्रभावशाली और रंगारंग जुलूस निकाला जाता है जिसमें निहंगों ने अपने पारंपरिक रूप में, अपनी परेड करते हुए मोहरा बनाते हैं हथियार, घोड़े की नाल, टेंट-पेगिंग और अन्य युद्ध जैसे खेलों के उपयोग में कौशल।
होला मोहल्ला का इतिहास :
पंजाब के श्री आनंदपुर साहिब में होलगढ़ नामक स्थान पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने होला मोहल्ला की रीति शुरू की। यहां आज किला होलगढ़ साहिब सुशोभित है। भाई काहन सिंह जी नाभा ने ‘गुरमति प्रभाकर’ में होला मोहल्ला के बारे में बताया है कि यह एक बनावटी हमला होता है, जिसमें पैदल और घुड़सवार शस्त्रधारी सिंह दो पार्टियां बनाकर एक खास जगह पर हमला करते हैं।
वर्ष 1757 में गुरु जी ने सिंहों की दो पार्टियां बनाकर एक पार्टी को सफेद वस्त्र पहना दिए और दूसरे को केसरी। फिर गुरु जी ने होलगढ़ पर एक गुट को काबिज करके दूसरे गुट को उन पर हमला करके यह जगह पहली पार्टी के कब्जे में से मुक्त करवाने के लिए कहा। इस दौरान तीर या बंदूक आदि हथियार बरतने की मनाही की गई क्योंकि दोनों तरफ गुरु जी की फौजें ही थीं। आखिरकार केसरी वस्त्रों वाली सेना होलगढ़ पर कब्जा करने में सफल हो गई।
गुरु जी सिखों का यह बनावटी हमला देखकर बहुत खुश हुए और बड़े स्तर पर प्रसाद बनाकर सभी को खिलाया गया तथा खुशियां मनाई गईं। उस दिन से श्री आनंदपुर साहिब का होला मोहल्ला दुनिया भर में अपनी अलग पहचान रखता है।

होला मोहल्ला के मौके पर गुलाब के फूलों और गुलाब से बने रंगों की होली खेली जाती है। सिख इतिहास और सिख धर्म में होला मोहल्ला की खास महत्ता है। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने होली को होला मोहल्ला में बदला था।