
इलेक्शन आते ही लोगो को धर्मों में बांटना क्यों कर देते है राजनितिक दल ?
सोच बदलनी होगी ( पंजाब 365 न्यूज़ ) : हमने कई बार देखा है की जैसे ही इलेक्शन आते है सब राजनितिक पार्टियां लोगो को हिन्दू मुस्लिम सिखों में बाँटना शुरू कर देते है। जो की मेरे हिसाब से बिलकुल गलत है। क्या सिर्फ वोटों के लिए लोगो के दिलों में धर्मों के प्रति ऐसी भावनाये डालनी चाहिए जो की लोगो के ज़हन में हिन्दू मुस्लिम दल दे। भगवन ने तो हमे सिर्फ यहाँ इंसान बना के भेजा था कइयों ने अब जातिबाद में बाँट दिया है। हम अपनी आनेवाली पीढ़ी को क्या सीखा रहे है। एक तरफ बोलते है जातिबाद कुछ नहीं होता है तो दूसरी तरफ अपने लालच की रोटियां राजनितिक दल जातिवाद पर ही सेंक रहे है। अब हमारी भी नई पीढ़ी को ये समझना होगा की ये जातिवाद कुछ नहीं होता है। कई इलाकों में हमने देखा है की दलितों के साथ बद से बदतर सलूक किया जाता है। कई जगहों पर दलितों की बेटियां आज भी सुरक्षित नहीं है। वो कैसे। क्यों हम्मरे ही समाज के कुछ लोग लोगो के दिलों में ये भावनाये भर देते है की जात पात अभी भी हम मानते है वही हमारी पीढ़ी हमसे सीखती है। इसलिए हमे आज ही जागरूक होना चाहिए की भगवा ने हमे तो यहां इंसान बना के भेजा है तो ये जातिवाद क्यों?
चुनाव आते ही फोक्स दलितों पर क्यों ?
जैसे ही चुनाव आ गए सभी हमारे देश के जाने माने मंत्री यहां दलितों की संख्या ज्यादा है वहां पहुँच जाते है खाना खाने या उनके साथ बैठ कर उनको तब ये एहसास दिलाया जाता है की वो उनके साथ भेदभाव नहीं करते। लेकिन मेा मनाना है की ये राजनितिक पार्टियन तब कहाँ जाती है जब इन दलितों या छोटे तबके बाले लोगो को इनकी जरूरत होती है तब ये अपने आलिशान घरों से बहार निकलने में शर्म करते है या दलित सिर्फ एक चुनावी दांव ही होता है इनके लिए।
हर कोई चुनावी दांव अपना दलितों पर ही खेल रहा है।
अबकी बार 5,राज्यों क चुनाव है और हर राज्य इस समय दलित का रोना रो रहा है अगर सच में दलितों के बारे में सब इतना सोचते है तो चुनावों के पहले और बाद में मिले आकर तब तो पता भी चले की ये चुनावी दांव नहीं बल्कि हकीकत में ये सब कर रहे है।
आइये अब बाते करे चुनावो की :
उत्तर प्रदेश में चुनावों के साथ दलितों को लेकर राजनीति भी शुरू हो चुकी है. तमाम राजनीतिक दल दलित समुदाय को लुभाने की पूरी कोशिश में जुटे हुए हैं. इसी कड़ी में अलग-अलग राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े नेता दलितों के घर आते-जाते और भोजन करते हुए नजर आ रहे हैं. दलित नेताओं की इस वक्त पूछ भी बढ़ गई है. आखिर क्यों दलित वोट उत्तर प्रदेश चुनावों में इतना अहम माना जाता है? क्या वाकई में दलित वोट राजनीतिक दलों के लिए सत्ता तक पहुंचने का एक रास्ता है।
उत्तर प्रदेश में 7 चरणों में होने वाले चुनावों की शुरुआत पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हो रही है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश जहां पर आंकड़ों के मुताबिक 21 फीसदी से ज्यादा दलित मतदाता हैं. ऐसे में यह माना जा सकता है कि 5 में से 1 मतदाता, दलित समाज से आता है. इसी वजह से दलित मतदाता खासतौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश मैं किसी भी राजनीतिक दल की जीत और हार सुनिश्चित करने में एक बड़ी भूमिका निभा सकता है. पिछले चुनावों के नतीजे भी यही बयां कर रहे हैं।
दलित वोटों का भी उपजाति के आधार पर बंटवारा हो जाता है। मसलन जाटव, पासी, वाल्मीकि। हालांकि माना यह जाता है कि इसमें से 55 फीसदी से अधिक वोट जाटव बिरादरी से आते हैं और यह जाटव बिरादरी हमेशा से ही मायावती और उनकी पार्टी बसपा के साथ रही है। अगर हम 2017 के विधानसभा चुनावों के नतीजों को देखते हैं तो वहां पर मायावती की पार्टी भले ही 19 सीटों पर सिमट गई थी, लेकिन वो वोट प्रतिशत में अपने से ज्यादा सीट हासिल करने वाली सपा से आगे ही थी। सपा को जहां 2017 के विधानसभा चुनावों में करीबन 21.8 फीसदी वोट मिले थे। वहीं बसपा को इन चुनावों में 22.2 फीसदी के करीब वोट मिले थे।
अब बात करे पंजाब की तो पंजाब में विधानसभा चुनाव के मुहाने पर जिस तरह की राजनीतिक उठापटक मची है, उससे इस बात की संभावना बढती जा रही है कि चुनाव में किसी भी पार्टी या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत शायद ही मिल सके। राज्य में मुख्य लड़ाई 31 फीसदी दलित वोटों को लुभाने की है, जिसकी शुरुआत पहले शिरोमणि अकाली दल ( शिअद) ने बसपा के साथ चुनावी गठबंधन करके और राज्य में दलित डिप्टी सीएम बनाने की घोषणा से की थी।
जवाब में कांग्रेस ने दलित कार्ड चलते हुए चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में राज्य का पहला दलित मुख्यमंत्री बनाकर बड़ा संदेश देने की कोशिश की तो उधर आम आदमी पार्टी (आप) संयोजक अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी सत्ता में आई तो दलित बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जाएगी।
कांग्रेस ने भी दलित दांव खेल कर चरणजीत चन्नी को cm,बनाया जो की सिद्धू को बिलकुल खुशगवार नहीं हुआ। इसका ताजा उदाहरण पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी को कोई मौका नहीं देना चाहते और खुद को भावी सीएम के रूप प्रोजेक्ट करते रहना चाहते हैं। जबकि चन्नी खुद को असरदार सीएम सिद्ध करने की कोशिश में लगे हैं। जबकि चन्नी को सीएम बनाने वाला कांग्रेस हाईकमान सिद्धू की हरकतों पर मौन है। पंजाब में देश की सबसे ज्यादा यानी 31 .9 फीसदी दलित आबादी है। जबकि जाट सिखों की संख्या 21 प्रतिशत है। कागज पर यह समीकरण मजबूत दिखता है, लेकिन हकीकत में वैसा होना बहुत कठिन है।