Salutations to him on the birth anniversary

” जन गण मन ” के रचयिता की जयंती पर उनको शत शत नमन

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रवीन्द्रनाथ टैगोर (पंजाब 365 न्यूज़ ) : प्रसिद्ध कवि ,कहानिकार ,गीतकार ,संगीतकार ,नाटककार रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7, मई 1861, को कलकत्ता में हुआ था। रबींद्रनाथ बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे, लेकिन उनका परंपरागत तरीके के अध्ययन में मन नहीं लगता था। उनकी आरंभिक शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। बैरिस्टर बनने के लिए उन्होंने 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में दिखिला लिया फिर लन्दन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया पर 1880 में बिना डिग्री प्राप्त किए ही स्वदेश वापस लौट आए।
रबींद्रनाथ ने साहित्य, संगीत, कला और शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया था. उन्हें प्रकृति का सान्निध्य बहुत पसंद था। उनका मानना था कि छात्रों को प्रकृति के पास रहकर शिक्षा हासिल करनी चाहिए। अपनी इसी सोच को ध्यान में रखकर उन्होंने शांति निकेतन की स्थापना की थी।

रवींद्रनाथ टैगोर को ‘गुरुदेव’ भी कहा जाता है। बचपन में ही उनका रुझान कविता और कहानी लिखने की ओर हो चुका था। उन्होंने अपनी पहली कविता 8 साल की उम्र में लिखी थी. 1877 में वह 16 साल के थे जब उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हुई थी।

दो देशों का राष्ट्रगान :
आपको बता दे की रवीन्द्रनाथ टैगोर एकमात्र ऐसे कवि है जिनकी रचनाये दो देशों का राष्ट्रगान बनी है।
भारत का राष्ट्रीयगान : जन मन गण
बांग्लादेश का राष्ट्रीगान : आमार सोनार बंगला


उन्होंने बंगाली साहित्य और संगीत, साथ ही साथ 19 वीं सदी के अंत और 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में प्रासंगिक आधुनिकतावाद के साथ भारतीय कला का पुनरुत्थान किया। गीतांजलि के “गहन रूप से संवेदनशील, ताजा और सुंदर कविता” के लेखक,वे 1913 में पहले गैर-यूरोपीय और साथ ही साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले गीतकार बने।टैगोर के काव्य गीतों को आध्यात्मिक और मधुर के रूप में देखा गया; हालांकि, उनकी “सुरुचिपूर्ण गद्य और जादुई कविता” बंगाल के बाहर काफी हद तक अज्ञात है। उन्हें कभी-कभी “बंगाल का बाड़ा” कहा जाता है।


रचनाएँ :
टैगोर ने कठोर शास्त्रीय रूपों और भाषाई सख्ती का विरोध करके बंगाली कला का आधुनिकीकरण किया। उनके उपन्यास, कहानियां, गीत, नृत्य-नाटक और निबंध राजनीतिक और व्यक्तिगत विषयों पर बात करते थे। गीतांजलि (गीत की पेशकश), गोरा (मेला-सामना) और घारे-बेयर (गृह और दुनिया) उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाएं हैं, और उनकी कविता, लघु कथाएँ, और उपन्यास प्रशंसित थे – या उन पर पाबंदी लगाई गई थी – उनके गीत, बोलचाल , प्रकृतिवाद, और अप्राकृतिक चिंतन। उनकी रचनाओं को दो राष्ट्रों ने राष्ट्रीय गान के रूप में चुना: भारत का “जन गण मन” और बांग्लादेश का “अमर शोनार बांग्ला”। श्रीलंका का राष्ट्रगान उनके काम से प्रेरित था।
जीवनी :
13 बच्चों में सबसे छोटे, टैगोर (उपनाम “रबी”) का जन्म रॉबिन्द्रनाथ ठाकुर ने 7 मई, 1861 को कलकत्ता में जोरासांको हवेली में हुआ था , ये देबेंद्रनाथ टैगोर और सारदा देवी के पुत्र थे ।
उनके पिता देवेंद्रनाथ टैगोर एक जाने-माने समाज-सुधारक थे. टैगोर की पढ़ाई सेंट जेवियर स्कूल से हुई थी। लंदन में उन्होंने कानून की पढ़ाई की पर बिना डिग्री लिए ही वापस चले आये. टैगोर की शादी 1883 में मृणालिनी देवी के साथ हुई थी। 1877 में वह 16 साल के थे जब उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हुई थी।


गाँधी ने दी थी गुरुदेव की उपाधि :
महात्मा गांधी ने रबीन्द्र जी को ‘गुरूदेव’ की उपाधि दी थी। नई दिल्लीः साहित्य जगत के साथ ही देश की आजादी के आंदोलन में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले रबीन्द्रनाथ टैगोर का आज 160वां जन्मदिवस मनाया जा रहा है।

नाईट हुड की उपाधि :
रवीन्द्रनाथ टैगोर को “नाईट हुड ” की उपाधि प्रदान की गयी थी । लेकिन उन्होंने 1919, में हुए जलियांवाला बाग़ नरसंहार के विरोध में ये सम्मान लौटा दिया था। आपको बता दे की नाईट हुड सम्मान मिलने पर नाम के साथ “sir” लगाया जाता है।
गुरुदेव को उनकी सबसे लोकप्रिय रचना गीतांजलि के लिए 1913 में नोबेल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।
1921 में उन्होंने ‘शांति निकेतन’ की नींव रखी थी। जिसे ‘विश्व भारती’ यूनिवर्सिटी के नाम से भी जाना जाता है।

बचपन से कुशाग्र बुद्धि के रवींद्रनाथ ने देश और विदेशी साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि से खुद को परिचित कर लिया था। वे एक मानवतावादी लेकिन आधुनिक विचारों के व्यक्ति थे लेकिन स्वस्थ परंपराओं में भी उनका पूर्ण विश्वास। उनकी ये सारी उनकी रचनाओं में भी स्पष्ट रूप से दिखती है. वे वैज्ञानिक सोच के व्यक्ति भी थे। 1934 में प्राकृतिक आपदा को जब गांधी ने हरिजनों के प्रति सदियों से चले आ रहे बुरे बर्ताव से जोड़ा तो गुरुदेव ने इसका खुल कर विरोध किया।
गुरुदेव की काव्यरचना गीतांजली को साल 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया। शायद यही वजह से उन्हें केवल महान कवि के तौर पर ही ज्यादा याद किया जाता है। जबकि साहित्य की कोई विधा नहीं है जिसमें उनकी कोई बेहतरीन रचना ना हो। उनकी कहानी काबुलीवाला बहुत पसंद की जाती है तो वहीं समीक्षक उनके उपन्यास गोरा को श्रेष्ठ कृति मानते हैं।

मृत्यु :
उनकी मौत 7 अगस्त 1941 को हुई थी.

प्रेरक प्रसंग :
किसी बच्चे के ज्ञान को अपने ज्ञान तक सीमित मत रखिये क्योंकि वह किसी और समय में पैदा हुआ है.
1-मौत प्रकाश को ख़त्म करना नहीं है; ये सिर्फ भोर होने पर दीपक बुझाना है.
2-कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी.
3-केवल खड़े होकर पानी को ताकते रहने से आप नदी को पार नहीं कर सकते हो.
4-प्यार अधिकार का दावा नहीं करता बल्कि यह आजादी देता है.
5-हम दुनिया में तब जीते हैं जब हम इस दुनिया से प्रेम करते हैं.
6-यदि आप सभी गलतियों के लिए दरवाजे बंद कर देंगे तो सच बाहर रह जायेगा.
7-जब हम विनम्र होते हैं, तब हम महानता के सबसे करीब होते हैं.
8-फूल की पंखुड़ियों को तोड़ कर आप उसकी सुंदरता को इकठ्ठा नहीं करते.
9-मैंने स्वप्न देखा कि जीवन आनंद है. मैं जागा और पाया कि जीवन सेवा है. मैंने सेवा की और पाया कि सेवा में ही आनंद है

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