
फ्लाइंग सिख : मिल्खा सिंह का कोरोना से निधन ,शुक्रवार देर रात ली अंतिम सांस
चंडीगढ़ (पंजाब 365 न्यूज़ ) : देश विदेश में अपना डंका बजा चुके मिल्खा सिंह का देर रात निधन हो गया है। 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है) के एक सिख परिवार में मिल्खा सिंह का जन्म हुआ था।अपने माँ-बाप की कुल 15 संतानों में वह एक थे। … भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिलखा सिंह ने अपने माँ-बाप और भाई-बहन खो दिया। अंततः वे शरणार्थी बन के ट्रेन द्वारा पाकिस्तान से दिल्ली आए। खेल और देश से बहुत लगाव था, इस वजह से विभाजन के बाद भारत भाग आए और भारतीय सेना में शामिल हो गए। कुछ वक्त सेना में रहे लेकिन खेल की तरफ झुकाव होने की वजह से उन्होंने क्रॉस कंट्री दौड़ में हिस्सा लिया। इसमें 400 से ज्यादा सैनिकों ने दौड़ लगाई। मिल्खा 6वें नंबर पर आए।
अंतिम सांस तक लड़े मौत के साथ :
बुधवार को ही सांस लेने में बहुत ज्यादा दिक्कत हो रही थी। उनकी मौत की वजह भी यही रही। डॉक्टर के मुताबिक ऐसी हालत में कोई युवा भी एक घंटा जीवित नहीं रह सकता, लेकिन दिग्गज धावक ने अंतिम सांस तक जीवन और मौत की लड़ाई लड़ी।
पूर्व भारतीय लीजेंड स्प्रिंटर मिल्खा सिंह का कोरोना की वजह से शुक्रवार रात 11:30 बजे निधन हो गया है। वे 91 साल के थे। 5 दिन पहले उनकी पत्नी निर्मल कौर का पोस्ट कोविड कॉम्प्लिकेशंस के कारण निधन हो गया था। मिल्खा सिंह का चंडीगढ़ के PGIMER में 15 दिनों से इलाज चल रहा था। उन्हें 3 जून को ऑक्सीजन लेवल गिरने के कारण ICU में भर्ती कराया गया था। 20 मई को उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी।
19 मई: शाम की सैर से लौटने के बाद टेस्ट पॉजिटिव आया। घर में काम करने वाले कुक से वे पॉजिटिव हुए।
आपको बता दे की मिल्खा सिंह और उनकी पत्नी 20 मई को कोरोना संक्रमित पाए गए थे। 24 मई को दोनों को एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 30 मई को परिवार के लोगों के आग्रह पर उनकी वहां से छुट्टी करवा ली गई थी और कुछ दिनों पहले ही वे घर लौटे थे। तब से उनका घर पर ही इलाज चल रहा था। इसके कुछ दिन बाद उनकी तबीयत फिर खराब हुई और ऑक्सीजन लेवल गिरने लगा था। 3 जून को उन्हें फिर से अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। वहीं, निर्मल कौर का इलाज मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में चल रहा था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने मिल्खा को श्रद्धांजलि दी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमने एक शानदार खिलाड़ी खो दिया। मिल्खा ने असंख्य भारतीयों के दिलों में अपनी खास जगह बनाई थी। मिल्खा के व्यक्तित्व ने उन्हें लाखों लोगों का चहेता बना दिया। उनके निधन से दुखी हूं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 4 जून को मिल्खा सिंह से फोन पर बातचीत की थी और उनसे स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली थी। PM ने कहा था कि मिल्खा टोक्यो ओलिंपिक में भाग लेने वाले एथलीटों को आशीर्वाद देने और प्रेरित करने के लिए जल्द ही वापस आएंगे।
जवाहर लाल नेहरू को गर्व था इन पर :
मिल्खा सिंह आज तक भारत के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित धावक हैं। कामनवेल्थ खेलो में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाले वे पहले भारतीय है। खेलो में उनके अतुल्य योगदान के लिये भारत सरकार ने उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्म श्री से भी सम्मानित किया है। पंडित जवाहरलाल नेहरू भी मिल्खा सिंह के खेल को देख कर उनकी तारीफ करते थे। और उन्हें मिल्खा सिंह पर गर्व था।
कैसे पड़ा फ्लाइंग सिख नाम :
मिल्खा सिंह पाकिस्तान में आयोजित एक दौड़ के लिए गए। इसमें उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। उनके प्रदर्शन को देखकर पाकिस्तान के जनरल अयूब खान ने उन्हें ‘द फ्लाइंग सिख’ नाम दिया। 1960 को रोम में आयोजित समर ओलिंपिक में मिल्खा सिंह से काफी उम्मीदें थीं। 400 मीटर की रेस में वह 200 मीटर तक सबसे आगे थे, लेकिन इसके बाद उन्होंने अपनी गति धीमी कर दी। इससे वह रेस में पिछड़ गए और चौथे नंबर पर रहे। 1964 में उन्होंने एशियाई खेल में 400 मीटर और 4×400 रिले में गोल्ड मेडल जीते।
नहीं लगवाई थी वैक्सीन :
लाज कर रहे डॉक्टर ने बताया कि सुबह तक मिल्खा सिंह बात कर रहे थे। डॉक्टर ने उनसे नाश्ता करने को कहा तो उन्होंने डॉक्टर से कहा कि पहले तुम भी चाय-कॉफी पी लो। उनकी बेटी के साथ आए परिवार के ड्राइवर ने बताया कि बाबू जी को घर के लोग वैक्सीन लगवाने को कहते थे, लेकिन वे लगवाने से इनकार कर देते थे। कहते थे, अब जरूरत नहीं है।
जब मांगी थी एक दिन की छुट्टी :
1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में जब मैंने पहला गोल्ड मैडल जीता, तो क्वीन ने मुझे गोल्ड मेडल पहनाया। स्टेडियम में करीब एक लाख अंग्रेज बैठे थे, भारतीय गिने-चुने ही थे। क्वीन जैसे ही गोल्ड मेडल पहनाकर गईं, तो एक साड़ी वाली औरत जो क्वीन के साथ ही बैठी थीं, दौड़ती हुई मेरे पास आई और बोली- मिल्खा जी…पंडित जी (जवाहरलाल नेहरू) का मैसेज आया है और उन्होंने कहा है कि मिल्खा से पूछो कि उन्हें क्या चाहिए।
आपको मालूम है मिल्खा सिंह ने उस दिन क्या मांगा था? सिर्फ एक दिन की छुट्टी। मैं पंडित जी से कुछ भी मांगता तो मिल जाता। लेकिन मांगने में शर्म का भाव आता है। तब मेरी तनख्वाह 39 रुपए 8 आने थी। सेना में मैं सिपाही था। उसी में हम गुजारा किया करते थे। आज इतना पैसा आ गया है खेल में, इतने लेटेस्ट इक्विपमेंट आ गए हैं, इतने स्टेडियम बन गए हैं, मगर मुझे दुख इस बात का है कि 1960 में जो मिल्खा सिंह ने रिकॉर्ड बनाया था, वहां तक आज तक कोई भारतीय खिलाड़ी नहीं पहुंच सका है। मुझे इस बात की तकलीफ है। आगे बढ़ो…सब कुछ है हमारे पास।
ओलिंपिक में मैडल जीतना अलग स्तर का काम है। वहां पर 220-230 देशों के खिलाड़ी आते हैं और अपनी पूरी तैयारी करके आते हैं। जोर लगाकर आते हैं कि हमें स्विमिंग में मेडल जीतना है, फुटबॉल में मेडल जीतना है, हॉकी में मेडल जीतना है। एथलेटिक दुनिया में नंबर वन गेम मानी जाती है। उसमें जो मैडल ले जाता है उसे दुनिया मानती है।
फिल्म- भाग मिल्खा भाग :
मिल्खा सिंह के जीवन पर साल 2013 में बॉलीवुड हिंदी फिल्म- भाग मिल्खा भाग बनी थी। इसका निर्देशन राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने किया, जबकि लेखन प्रसून जोशी का था। मिल्खा सिंह की भूमिका में फरहान अख्तर नजर आए थे। अप्रैल 2014 में 61वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में इस फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ मनोरंजक फिल्म का पुरस्कार मिला। इसके अतिरिक्त सर्वश्रेष्ठ कोरियोग्राफी के लिए भी पुरस्कृत किया गया था।
पुरस्कार : मिल्खा सिंह 1959 में ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किये गये
उपलब्धियाँ :
• इन्होंने 1958 के एशियाई खेलों में 200 मी व 400 मी में स्वर्ण पदक जीते।
• इन्होंने 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
• इन्होंने 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीता।