
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये जानिए व्रत की विधि और इस वर्ष बनने बाले संयोग
हैप्पी जन्माष्टमी 2021( पंजाब 365 न्यूज़ ) :साल 2021 में जन्माष्टमी आज यानी सोमवार, 30 अगस्त को मनाई जा रही है। बता दें कि अष्टमी तिथि की शुरुआत रविवार रात 11 बजकर 25 मिनट से हुई थी जो आज देर रात 01 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। इस साल भी कान्हा के भक्त बहुत धूमधाम से त्यौहार को मना रहे हैं। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हर्षण योग और रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस दिन को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी या श्रीकृष्ण जयंती के रुप में मनाते हैं। इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महापर्व आज 30 अगस्त दिन सोमवार को है।जन्माष्टमी का पर्व देश भर में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण का सुंदर श्रृंगार किया जाता है और कई जगह झाकियां निकाली जाती हैं। इस पर्व की खास रौनक भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा-वृंदावन में देखने को मिलती है। देश भर से लोग यहां कृष्ण जन्माष्टमी का खूबसूरत नजारा देखने को आते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप को झूला झुलाने की भी परंपरा है। जन्माष्टमी पर पूरे दिन व्रत रखा जाता है और रात 12 बजे कृष्ण जी की पूजा के बाद व्रत खोला जाता है। ऐसे में पूरे देश में बाल गोपाल भगवान श्रीकृष्ण की आराधना की जाएगी और व्रत रखते हुए लोग मंदिरों तथा घरों में भजन व कीर्तन करेंगे। मुथरा में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम तो पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओरआकर्षित करती है। रास रचइया, माखन चोर, कृष्ण कन्हैया, नंदकिशोर, बाल गोपाल जैसे अनेकों नामों से पुकारे जाने वाले श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव से हर ओर उल्लास और उमंग का वातावरण रहता है। आज भी जन्माष्टमी पर जयंती योग है। इसलिए सालों बाद जन्माष्टमी एक ही दिन पड़ रही है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और रात को 12 बजे ही कान्हा के जन्म के बाद व्रत खोला जाता है। कान्हा का जन्मोत्सव घर -घर में मनाया जाता है। जन्माष्टमी की तैयारी बहुत दिन पहले से ही होने लगती है और जन्माष्टमी के दिन पर लोग एक दूसरों को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं भेजते हैं।
भगवन का जन्म कंस का बध करने के लिए हुआ था :
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था. बताया जाता है कि उनका जन्म कंस का वध करने के लिए हुआ था. आपको बता दें कि पौराणिक कथाओं में उनके जन्म का जिक्र करते हुए बताया गया है कि द्वापर युग में कंस ने अपने पिता उग्रसेन राजा की राज गद्दी छीन कर, उन्हें सिंहासन से उतार दिया था और जेल में बंद कर दिया था. इसके बाद कंस ने गुमान में खुद को मथुरा का राजा घोषित किया था. कंस की एक बहन भी थी. जिनका नाम देवकी था. देवकी की शादी विधि-विधान के साथ वासुदेव की गई थी और कंस ने धूम-धाम से देवकी का विवाह कराया लेकिन कथा अनुसार जब कंस देवकी को विदा कर रहा था, तब आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा. यह आकाशवाणी सुनकर कंस की रुह कांप गई और वह घबरा गया. ऐसी आकाशवाणी सुनने के बाद कंस ने अपनी बहन देवकी की हत्या करने का मन बना लिए लेकिन वासुदेव ने कंस को समझाया कि ऐसा करने का कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि कंस को देवकी से नहीं, बल्कि उसकी आठंवी संतान से भय है. जिसके बाद वासुदेव ने कंस से कहा कि जब उनकी आठवीं संतान होगी तो वह उसे कंस को सौंप देंगे. ये सुनने के बाद कंस ने वासुदेव और देवकी को जेल में कैद कर लिया। इसके बाद क्रूर कंस ने देवकी और वासुदेव की 7 संतानों को मार दिया. जब देवकी की आठवीं संतान का जन्म होने वाला था, तब आसमान में घने और काले बादल छाए हुए थे और बहुत तेज बारिश हो रही थी. इसके साथ ही आसमान में बिजली भी कड़क रही थी. मान्यता के मुताबिक मध्यरात्रि 12 बजे जेल के सारे ताले खुद ही टूट गए और वहां की निगरानी कर रहे सभी सैनिकों को गहरी नींद आ गई और वो सब सो गए. कहा जाता है कि उस समय भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्हें वासुदेव-देवकी को बताया कि वह देवकी के कोख से जन्म लेंगे. इसके बाद उन्होंने कहा कि वह उन्हें यानी उनके अवतार को गोकुल में नंद बाबा के पास छोड़ आएं और उनके घर जन्मी कन्या को मथुरा ला कर कंस को सौंप दें. इसके बाद वासुदेव ने भगवान के कहे अनुसार किया. वह कान्हा को नंद बाबा के पास छोड़ आए और गोकुल से लाई कन्या को कंस को सौंप दिया।
क्रोधित कंस ने जैसे ही कन्या को मारने के लिए अपना हाथ उठाया तो अचानक कन्या गायब हो गई। जिसके बाद एक आकाशवाणी हुई कि कंस जिस शिशु को मारना चाहता है वो गोकुल में है. यह आकाशवाणी सुनकर कंस डर गया को अपने भांजे कृष्ण को मारने के लिए उसने राक्षसों को गोकुल भेज कर कान्हा का असतित्व मिटाने की कोशिश की लेकिन श्रीकृष्ण ने सभी राक्षसों का एक-एक कर वध कर दिया और आखिर में भगवान विष्णु के अवतार ने कंस का भी वध कर दिया।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पूजा की महत्वपूर्ण सामग्री:
एक साफ़ चौकी, पीले या लाल रंग का साफ़ कपड़ा, खीरा, शहद, दूध, दही, पंचामृत, बाल कृष्ण की मूर्ति, चंदन, अक्षत, गंगाजल, धूप, दीपक, अगरबत्ती, मक्खन, मिश्री, तुलसी के पत्ते और भोग सामग्री