
इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैंसला ,शादीशुदा बेटिओं के अधिकार को लेकर कही बड़ी बात
इलाहाबाद NEWS (पंजाब 365 न्यूज़) : हाई कोर्ट ने एक महत्ब्पूर्ण फैंसला लेते हुए कहा की लड़की विवाहित हो या अविवाहित पुत्र की तरह वो भी तो परिवार की सदस्य होती है। इलाहाबाद कोर्ट ने कहा की जब हाईकोर्ट ने मृतक आश्रित सेवा नियमावली के अविवाहित शब्द को लिंग भेद बाला मन कर असवैंधानिक घोषित कर दिया है तो पुत्री के आधार पर आश्रित की नियुक्ति पर विचार किया जायेगा , इसके लिए नियम में संशोधन की आवश्यकता नहीं है।
सरकार की तरफ से कहा गया है की ये असवैधानिक है और सरकार की तरफ से अभी कोई नियम बदला नहीं गया है। इसलिए विवाहित पुत्री को नियुक्ति पाने का अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ता की माँ प्राइमरी स्कूल में प्रधानाध्यापिका थी सेवा काल में ही उनका निधन हो गया। तीन बेटियां थी सभी की शादी हो चुकी है। पिता बेरोजगार है ,और माँ की मौत के बाद जीवन यापन का संकट उतपन हो गया है। याचिएकाकर्ता ने आश्रित कोटे से नियुक्ति की मांग की थी जिसे अस्वीकार कर दिया गया है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के विवाहित होने के आधार पर मृतक आश्रित के रूप में नियुक्ति देने से इंकार करने को लेकर BS-प्रयागराज के आदेश को रद्द कर दिया है।
कोर्ट ने कहा की अगर अविवाहित शब्द को असवैंधानिक करार देने पर भी शब्दाबली में पुत्री शब्द तो बचा ही है। तो BS- प्रयागराज विवाहित पुत्री को नियम के ना बदलने पर नियुक्ति देने से इंकार नहीं कर सकता। अगर शब्द हटते भी है तो नियम बदलने की जरूरत ही नहीं है।
ये आदेश न्यायमूर्ति JJ मुनीर ने मंजुल श्रीवास्तव की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया ह। इस याचिका पर अधिवक्ता मौर्य ने बहस की । अधिवक्ता घनश्याम मौर्य का कहना था की विमला श्रीवास्तव केस में कोर्ट ने अविवाहित शब्द को असंवैधनिक करार देते हुए रद्द कर दिया है इसलिए विवाहित पुत्री को भी आश्रित कोटे में से नियुक्ति पाने का अधिकार है। उन्होंने कहा की BS-प्रयागराज ने कोर्ट के फैंसले के विपरीत आदेश दिया है , जो की अवैध है।