Know what is "Manila Rope"

जानिए क्या है ” मनिला रोप “,जो रोप सिर्फ बिहार की बक्सर जेल में बनती है

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रोचक जानकारी ( पंजाब 365 न्यूज़ ) : जब कोई मनुष्य बड़ा अपराध करता है, तो उसे बड़ी ही सजा मिलती है। फांसी की सजा या फिर उम्र कैद की सजा, लेकिन उम्र कैद से बड़ी सजा फांसी की होती है, क्योंकि जब फांसी का नाम अपराधी सुनता है, तो वह स्वयं भी थर-थर कांपने लगता है। किसी अपराधी को कोर्ट में जब जज साहब के द्वारा फांसी की सजा सुनाई जाती है, तो जज सजा सुनाने के बाद उस पेन की निब को तोड़ देता है जिस पेन से उस अपराधी की सजा लिखता है। दुनियाभर में करीब एक-चौथाई देशों में मौत की सज़ा दी जाती है. भारत उन एक-चौथाई देशों में से एक है. भारत में मौत की सज़ा देने के दो तरीके हैं-
1-आम नागरिकों को फांसी पर लटकाकर मृत्युदंड दिया जाता है
2-सेना में फांसी के अलावा गोली मारकर मृत्युदंड दिया जाता है

साल 1983 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि भारत में ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ यानी सबसे संगीन और घिनौने मामले में ही फांसी की सजा होगी गले में रस्सी के कसने के कारण हुई मौत को फांसी कहा जाता है प्राचीन काल में अपराधियोँ को दण्ड देने के लिये फांसी की सजा दी जाती थी और वर्तमान में भी जघन्य अपराधोँ के दण्ड हेतु यह प्रथा प्रचलन में है अरब देशोँ में फांसी बहुत सामान्य सजा है भारत में भी फांसी की सजा प्रचलन में है और देश की प्रमुख जेलोँ में इसके लिये फांसीघर बने हुये हैं इन जेलोँ में फांसी देने वाले कर्मचारियोँ की नियुक्ति होती है जिन्हे जल्लाद कहा जाता है आत्महत्या के लिये भी फांसी एक सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाला तरीका है। फांसी में व्यक्ति के गले में रस्सी का फन्दा कस जाता है और उसका साँस मार्ग अवरुद्ध हो जाने से उसका दम घुट जाता है और इस प्रकार उस व्यक्ति की दर्दनाक मौत हो जाती है।
साल 2012 में निर्भया मामले को भी कोर्ट ने इसी श्रेणी में माना था और दोषियों को फांसी की सजा मुकर्रर की गई थी.।
फांसी की सजा फाइनल होने के बाद डेथ वॉरंट का इंतजार होता है. दया याचिका खारिज होने के बाद ये वॉरंट कभी भी आ सकता है. वॉरंट में फांसी की तारीख और समय लिखा होता है. मृत्युदंड वाले कैदी के साथ आगे की कार्यवाही जेल मैनुअल के हिसाब से होती है. बता दें, हर राज्य का अपना-अलग जेल मैनुअल होता है. आपको बता दें, किसी को फांसी देते समय कुछ नियमों का पालन करना जरूरी होता है. जिसके बिना फांसी की प्रक्रिया अधूरी मानी जाती है. बिना नियमों का पालन किए फांसी की प्रक्रिया पूरी नहीं की जाती है. अब बारी होती है डेथ वॉरंट जारी होने के बाद कैदी को ये बताने की कि उसे फांसी होने वाली है.
जेल सुप्रीटेंडेंट प्रशासन को भी डेथ वॉरंट की जानकारी देते हैं. अगर कैदी की जेल में फांसी की व्यवस्था नहीं है तो उसे डेथ वॉरंट आने के बाद नई जेल में शिफ्ट कर दिया जाता है।
हमारे देश में किसी भी मुजरिम को फांसी दी जाती है तो उसके पहले कुछ औपचारिकता होती हैं उसके बाद ही उसे फांसी पर लटकाया जाता। इन सभी के बगैर अपराधी को फांसी नहीं दी जाती है।

  • सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के मुताबिक जिसे मौत की सजा दी जाती है उसके रिश्तेदारों को कम से कम 15 दिन पहले खबर मिल जानी चाहिए ताकि वो आकर मिल सकें।
    • फांसी की सजा पाए कैदियों के लिए फंदा जेल में ही सजा काट रहा कैदी तैयार करता है आपको अचरज हो सकता है, लेकिन अंग्रेजों के जमाने से ऐसी ही व्यवस्था चली आ रही हैं।
    • देश के किसी भी कोने में फांसी देने की अगर नौबत आती है तो फंदा सिर्फ बिहार की बक्सर जेल में ही तैयार होता है इसकी वजह यह है कि वहां के कैदी इसे तैयार करने में माहिर माने जाते हैं।
  • फांसी के फंदे की मोटाई को लेकर भी मापदंड तय है। फंदे की रस्सी डेढ़ इंच से ज्यादा मोटी रखने के निर्देश हैं। इसकी लंबाई भी तय हैं।
  • फाँसी के फंदे की कीमत बेहद कम हैं। दस साल पहले जब धनंजय को फांसी दी गई थी, तब यह 182 रुपए में जेल प्रशासन को उपलब्ध कराया गया था।
    डेथ वारंट जारी होने के बाद जेल प्रशासन का काम होता है कैदियों को मानसिक रूप से मौत के लिए तैयार करना। उन्हें एक अलग कोठरी में शिफ्ट किया जाता है और उनकी लगातार निगरानी की जाती है।
  • फांसी सदैव सूर्योदय से पहले दी जाती है।
  • फांसी देने के लिए विशेष रस्सी का इंतजाम किया जाता है। यह रस्सी सिर्फ बिहार की बक्सर जेल में बनती है और इसे ‘मनीला रोप’ कहा जाता है।
  • फांसी से पहले मुजरिम के चेहरे को काले सूती कपड़े से ढक दिया जाता हैं और 10 मिनट के लिए फांसी पर लटका दिया जाता हैं फिर डॉक्टर फांसी के फंदे में ही चेकअप करके बताता हैं कि वह मृत है या नहीं उसी के बाद मृत शरीर को फांसी के फंदे से उतारा जाता हैं।

  • क्या है मनीला रोप :

    ;’फांसी के फंदे को जे-34 नंबर के धागे से बनाया जाता है। कोई भी कपड़ा बनता है तो हर एक सूत का अपना एक नंबर होता है। इसी तरह से जे-34 धागे का इस्तेमाल फांसी का फंदा बनाने के लिए किया जाता है। एक हैंगिंग रोप में 72 धागे होते हैं। दरअसल, हम यह सोचकर चलते हैं कि इनमें से यदि एक या दो धागे टूट भी गए तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। जेल सुपरिटेंडेंट कहते हैं, ‘हमारे यहां फांसी का फंदा बनाने की प्रक्रिया में एक मशीन है। एक फ्रेम, जो कि बोर्डनुमा है उसमें 154 की रील चढ़ाते हैं। एक थ्रेड डबल धागों का बना हुआ है यानी यह अपने आप 308 हो गया। 154 की एक लट में धागों की संख्या 308 है। इस तरह की 6 लटें होती हैं। इन 6 लटों में 1800 धागे होते हैं। इन लटों को चाक के जरिए घुमाया जाता है। काफी दूरी पर खड़े कुछ कैदी इसे लोहे की रॉड पर लगे पीतल के एक बुश में इसे फंसा देते हैं। फिर इन लटों को कसते हुए शुरुआत में 56 फीट की लंबाई ली जाती है और इसे बाद में कसते हुए 16 फीट की लंबाई पर ले आते हैं। इस तरह से यह रस्सी तैयार होती है।’फांसी के लिए पहले कॉटन से धागा बनाया जाता था। यही नहीं, गंगा के किनारे बक्सर जेल के पीछे उद्देश्य भी कहीं न कहीं यही था कि गंगा के पानी को बॉयलर में गर्म करके उस जगह नमी पहुंचाई जाए, जहां धागे तैयार किए जाते थे। इससे धागा मजबूत होता था और टूटता नहीं था।’

  • फंदे पर लगाई जाती है वैक्स और क्रीम :
    फांसी का फंदा तैयार होने के बाद इसमें वैक्स लगाई जाती है। क्रैम नाम का एक पाउडर भी होता है, जिसे कि फिसलन के लिए लगाया जाता है।’ वहीं पके केले रगड़ने की बात पर उनका कहना है, ‘हां, यह फांसी दिए जाने से एक-दो दिन पहले की प्रक्रिया है। सबसे पहले एक लूब्रिकेंट में रखा जाता है, फिर इस पका हुआ केला रगड़ा जाता है ताकि फंदा नरम हो जाए।’

फांसी से ठीक पहले जल्लाद मुजरिम के पास जाता है और उसके कान में कहता है कि “मुझे माफ कर देना, मैं तो एक सरकारी कर्मचारी हूं. कानून के हाथों मजबूर हूं.” इसके बाद अगर मुजरिम हिंदू है तो जल्लाद उसे राम-राम बोलता है, जबकि मुजरिम अगर मुस्लिम है तो वह उसे आखिरी दफा सलाम करता है.

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