
जानिए क्या है नाटो ? जिसमे मिलना चाहता है यूक्रेन
एनालिसिस ( पंजाब 365 न्यूज़ ) : आज के वक़्त में यूक्रेन और रूस की आपसी लड़ाई हर किसी का मुद्दा बनी हुई है। इन दोनों देशों में हालात खराब हो रहे है जिसके चलते अब भारतीय छात्र छात्राये भी अपने वतन को लौट रहे हैं। रूस और यूक्रेन के बीच तनाव जारी है. रूस और यूक्रेन दोनों ही सोवियत यूनियन का हिस्सा रहे हैं. 1991 में यूक्रेन के अलग होने के बाद से दोनों देशों के बीच विवाद शुरू हो गया. विवाद तब और बढ़ गया जब यूक्रेन से रूसी समर्थक राष्ट्रपति को हटा दिया गया.लेकिन क्या आपको पता है की ये नाटो है क्या जिसका हिस्सा अब यूक्रेन भी बनना चाहता है। नाटो (NATO) अमेरिकी नेतृत्व का एक सैन्य गठबंधन है। जिसका पूरा नाम North Atlantic Treaty Organization अर्थात् उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन है। नाटो एक सैन्य गठबन्धन है, जिसकी स्थापना 4 अप्रैल 1949 को हुई। इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में है। संगठन ने सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था बनाई है, जिसके तहत सदस्य राज्य बाहरी हमले की स्थिति में सहयोग करने के लिए सहमत होंगे। गठन के शुरुआत के कुछ वर्षों में यह संगठन एक राजनीतिक संगठन से अधिक नहीं था। लेकिन कोरियाई युद्ध ने सदस्य देशों को प्रेरक का काम किया और दो अमरीकी सर्वोच्च कमाण्डरों के दिशानिर्देशन में एक एकीकृत सैन्य संरचना निर्मित की गई। लॉर्ड इश्मे पहले नाटो महासचिव बने, जिनकी संगठन के उद्देश्य पर की गई टिप्पणी, “रूसियों को बाहर रखने, अमेरीकियों को अन्दर और जर्मनों को नीचे रखने” (के लिए गई है।) खासी चर्चित रही। यूरोपीय और अमरीका के बीच रिश्तों की तरह ही संगठन की ताकत घटती-बढ़ती रही। इन्हीं परिस्थितियों में फ्रांस स्वतन्त्र परमाणु निवारक बनाते हुए नाटो की सैनिक संरचना से 1966 से अलग हो गया। मैसिडोनिया 6 फरवरी 2019 को नाटो का 30 वाँ सदस्य देश बना। नाटो दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन है, जिसकी मौजूदगी दुनिया भर में है. कहीं सदस्य देशों की वजह से तो कहीं क्षेत्रीय संधियों के बूते. इसका सबसे बड़ा सदस्य अमेरिका है जबकी सबसे छोटा सदस्य 200 सैनिकों वाला आइसलैंड. बात करे यूक्रेन की तो दुनिया में सबसे गहराई वाला मेट्रो स्टेशन यूक्रेन में ही स्थित है. इसे यूक्रेन का Arsenalna Metro Station कहा जाता है. यूक्रेन की साक्षरता दर (Literacy Rate) करीब 99.8 फीसदी है. ये दुनिया की चौथी सबसे बड़ी साक्षरता दर है. औसत जीवन प्रत्याशा दर लगभग 71.48 साल है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के अनुसार यूक्रेन दुनिया का छठा सबसे ज्यादा शराब की खपत करने वाला देश है. यहां का सबसे लोकप्रिय खेल फुटबॉल और मुक्केबाजी है. अपने परमाणु शस्त्रागार को छोड़ने वाला दुनिया का पहला देश है यूक्रेन.यूक्रेन, पूर्वी यूरोप में स्थित देश, रूस के बाद महाद्वीप पर दूसरा सबसे बड़ा देश है। इसकी राजधानी कीव है, जो उत्तर-मध्य यूक्रेन में नीपर नदी पर स्थित है।
1989 में बर्लिन की दीवार के गिरने के बाद संगठन का पूर्व की तरफ बाल्कन हिस्सों में हुआ और वारसा संधि से जुड़े हुए अनेक देश 1999 और 2004 में इस गठबन्धन में शामिल हुए। १ अप्रैल 2009 को अल्बानिया और क्रोएशिया के प्रवेश के साथ गठबंधन की सदस्य संख्या बढ़कर 28 हो गई। संयुक्त राज्य अमेरिका में 11 सितम्बर 2009 के आतंकवादी हमलों के बाद नाटो नई चुनौतियों का सामना करने के लिए नए सिरे से तैयारी कर रहा है, जिसके तहत अफ़गानिस्तान में सैनिकों की और इराक में प्रशिक्षकों की तैनाती की गई है।
बर्लिन प्लस समझौता नाटो और यूरोपीय संघ के बीच 16 दिसम्बर 2002 को बनाया का एक व्यापक पैकेज है, जिसमें यूरोपीय संघ को किसी अन्तरराष्ट्रीय विवाद की स्थिति में कार्रवाई के लिए नाटो परिसम्पत्तियों का उपयोग करने की छूट दी गई है, बशर्ते नाटो इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं करना चाहता हो। नाटो के सभी सदस्यों की संयुक्त सैन्य खर्च दुनिया के रक्षा व्यय का 70% से अधिक है, जिसका संयुक्त राज्य अमेरिका अकेले दुनिया का कुल सैन्य खर्च का आधा हिस्सा खर्च करता है और ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और इटली 15% खर्च करते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व रंगमंच पर अवतरित हुई दो महाशक्तियों सोवियत संघ और अमेरिका के बीच शीत युद्ध का प्रखर विकास हुआ। फुल्टन भाषण व ट्रूमैन सिद्धान्त के तहत जब साम्यवादी प्रसार को रोकने की बात कही गई तो प्रत्युत्तर में सोवियत संघ ने अंतर्राष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन कर १९४८ में बर्लिन की नाकेबन्दी कर दी। इसी क्रम में यह विचार किया जाने लगा कि एक ऐसा संगठन बनाया जाए जिसकी संयुक्त सेनाएँ अपने सदस्य देशों की रक्षा कर सके।
मार्च १९४८ में ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैण्ड तथा लक्सेमबर्ग ने बूसेल्स की सन्धि पर हस्ताक्षर किए। इसका उद्देश्य सामूहिक सैनिक सहायता व सामाजिक-आर्थिक सहयोग था। साथ ही सन्धिकर्ताओं ने यह वचन दिया कि यूरोप में उनमें से किसी पर आक्रमण हुआ तो शेष सभी चारों देश हर सम्भव सहायता देगे।
इसी पृष्ठ भूमि में बर्लिन की घेराबन्दी और बढ़ते सोवियत प्रभाव को ध्यान में रखकर अमेरिका ने स्थिति को स्वयं अपने हाथों में लिया और सैनिक गुटबन्दी दिशा में पहला अति शक्तिशाली कदम उठाते हुए उत्तरी अटलाण्टिक सन्धि संगठन अर्थात नाटो की स्थापना की। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद १५ में क्षेत्रीय संगठनों के प्रावधानों के अधीन उत्तर अटलांटिक सन्धि पर हस्ताक्षर किए गए। उसकी स्थापना ४ अप्रैल, १९४९ को वांशिगटन में हुई थी जिस पर १२ देशों ने हस्ताक्षर किए थे। ये देश थे- फ्रांस, बेल्जियम, लक्जमर्ग, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैण्ड, इटली, नार्वे, पुर्तगाल और संयुक्त राज्य अमेरिका।
शीत युद्ध की समाप्ति से पूर्व यूनान, टर्की, पश्चिम जर्मनी, स्पेन भी सदस्य बने और शीत युद्ध के बाद भी नाटों की सदस्य संख्या का विस्तार होता रहा। 1999 में मिसौरी सम्मेलन में पोलैण्ड, हंगरी, और चेक गणराज्य के शामिल होने से सदस्य संख्या १९ हो गई। मार्च 2004 में ७ नए राष्ट्रों को इसका सदस्य बनाया गया फलस्वरूप सदस्य संख्या बढ़कर २६ हो गई। इस संगठन का मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रूसेल्स में हैं।
कब आजाद हुआ यूक्रेन
24 अगस्त 1991 को सोवियत संघ के टूटने के बाद यूक्रेन ने स्वतंत्रता हासिल की थी. फिर 1922 में यूक्रेन सोवियत संघ का सदस्य बना गया. इस देश की सीमाएं उत्तर-पूर्व और पूर्व में रूस, उत्तर-पश्चिम में बेलारूस, पश्चिम में पोलैंड और स्लोवाकिया से मिलती है.
यूक्रेन और रूस के तनाव का कारण कौन ;
रूस और यूक्रेन के बीच बढ़े तनाव के पीछे एक वजह नाटो भी है. यूक्रेन की नाटो का सदस्य बनने की इच्छा है. ऐसा होने का मतलब है कि रूस की सीमा तक नाटो सेनाओं की स्थायी मौजूदगी हो सकती है. नाटो ने साल 2008 के ब्यूक्रेस्ट सम्मेलन में यूक्रेन और जॉर्जिया के नाटो सदस्य बनने की इच्छाओं का स्वागत किया था. लेकिन किन्हीं वजहों से सदस्यता नहीं दी गई. कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहे यूक्रेन का नाटो सदस्य बन जाना रूस शासन को नहीं सुहाता. नाटो संधि के अनुच्छेद 10 में सदस्य बनने के लिए खुला आमंत्रण दिया गया है. इसके मुताबिक, कोई भी यूरोपीय देश जो उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र की सुरक्षा को बढ़ावा और कायम रखना चाहता है, वह सदस्य बन सकता है. नाटो का सदस्य होने के लिए यूरोपीय देश होना एक जरूरी शर्त है. लेकिन नाटो ने अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए कई अन्य देशों के साथ संबंध स्थापित किए हैं. भूमध्य इलाके में अल्जीरिया, मिस्र, इस्राएल, जॉर्डन, मौरितानिया, मोरक्को और ट्यूनिशिया नाटो के सहयोगी हैं. दक्षिण एशिया में पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भी नाटो की भूमिका रही है.
उद्देश्य :
1. यूरोप पर आक्रमण के समय अवरोधक की भूमिका निभाना।
2. सोवियत संघ के पश्चिम यूरोप में तथाकथित विस्तार को रोकना तथा युद्ध की स्थिति में लोगों को मानसिक रूप से तैयार करना।
3. सैन्य तथा आर्थिक विकास के लिए अपने कार्यक्रमों द्वारा यूरोपीय राष्ट्रों के लिए सुरक्षा छत्र प्रदान करना।
4. पश्चिम यूरोप के देशों को एक सूत्र में संगठित करना।
5. इस प्रकार नाटों का उद्देश्य “स्वतंत्र विश्व” की रक्षा के लिए साम्यवाद के लिए और यदि संभव हो तो साम्यवाद को पराजित करने के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता माना गया।
नाटो के 6 सदस्य देश एक दूसरे देशों के मध्य सुरक्षा प्रधान करता हैं ।
यूरोपीय शक्तियां शांतिपूर्ण ढंग से निपटाना चाहती यूक्रेन और रूस का विवाद ;
रूस और यूक्रेन के बीच बढ़ते तनाव को यूरोपीय शक्तियां शांतिपूर्ण ढंग से निपटाना चाहती हैं. जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स, फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों और पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रेज डूडा के बीच यूक्रेन संकट पर 8 फरवरी (मंगलवार) को जर्मनी की राजधानी बर्लिन में बातचीत हुई. जर्मन सरकार की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, “नेताओं ने यूक्रेन की सीमा पर तनाव कम करने और यूरोप में सुरक्षा पर सार्थक बातचीत शुरू करने के लिए रूस से कहा है. यूक्रेन के खिलाफ किसी भी रूसी सैन्य आक्रमण के गंभीर परिणाम होंगे और इसकी भारी कीमत चुकानी होगी.” इससे पहले 7 फरवरी को शॉल्त्स और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की मुलाकात में भी रूस पर इसी तरह की चेतावनी जारी की गई थी. अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो उस सूरत में यूरोप और अमेरिका की ओर से नाटो सेनाएं साझा कार्रवाई करेंगी.
क्या है मामला :
दरअसल, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सोमवार को पूर्वी यूक्रेन के डोनेत्स्क और लुगंस्क को अलग देश के रूप में मान्यता दे दी है. इसके बाद विवाद बढ़ गया है. अमेरिका एक्शन में आ गया है तो वहीं ब्रिटेन ने भी रूस पर कुछ नए प्रतिबंध लगा दिए हैं. वहीं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी आज यूक्रेन मसले पर मीटिंग हुई.
रूस ने यूक्रेन के दो हिस्सों को अलग राष्ट्र के तौर पर मान्यता दे दी. रूस की सीमा यूक्रेन से लगती है. यूक्रेन के पूर्व में दो प्रांत हैं जिनको रूस ने आजाद घोषित किया है. इनके नाम हैं- लुहांस्क और डोनेस्टक.
यूक्रेन की आबादी
यूक्रेन दुनिया का 46 वां और यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा देश है. यूक्रेन का कुल क्षेत्रफल करीब छह लाख वर्ग किमी है. देश की कुल जनसंख्या 44.9 मिलियन यानी कि 4.49 करोड़ है. यूक्रेन की जनसंख्या का लगभग 78 फीसदी हिस्सा मूल यूक्रेनवासियों का है, जबकि 22 फीसदी हिस्सा दूसरे देशों से आकर बसे लोगों का है. यहां 100 महिलाओं के लिए केवल 86.3 पुरुष हैं.
यूक्रेन की मुद्रा, भाषा
यूक्रेन का सबसे बड़ा शहर और राजधानी कीव (Kiev) है. सर्वाधिक जनसंख्या (2.8 मिलियन) इसी शहर में निवास करती है. यहां का प्रमुख धर्म ईसाई है, आधिकारिक भाषा यूक्रेनी है. हालांकि कई अन्य भाषाएं भी बोली जाती हैं. देश की आधिकारिक मुद्रा Ukrainian Hryvnia है.
भारत से यूक्रेन की दूरी
नई दिल्ली से यूक्रेन की दूरी करीब 5000 किलोमीटर है. फ्लाइट्स से करीब पांच घंटे का समय लगता है.
क्या सच में होगा तृतीय विश्व युद्ध :
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का शुक्रवार का बयान कि रूस यूक्रेन पर जल्द ही हमला कर सकता है. खुफिया एजेंसियों द्वारा किए गए आकलन और मैक्सार टेक्नोलॉजीज द्वारा जारी उपग्रह तस्वीरों के जरिये यह स्पष्ट है कि रूस यूक्रेन पर हमला करने के लिए पूरी तरह तैयार है. तस्वीरों से पता चलता है कि ओपुक और येवपटोरिया रेलयार्ड में सैनिक मौजूद हैं, जिन्हें वर्ष 2014 में यूक्रेन से ये दोनों इलाके रूस द्वारा जब्त किए गए थे. फिर डोनुज़्लाव और नोवोज़र्नॉय झील की साइटों में बख्तरबंद वाहनों और टैंकों की तैनाती भी देखी जा रही है. रूस ने यूक्रेन को तीन तरफ से घेरने के लिए सैन्य अभ्यास के लिए बेलारूस भी भेजा है, जिसे पश्चिमी देश कहता है कि जब तक मास्को की सुरक्षा मांगें पूरी नहीं होतीं, तब तक वह हमले की तैयारी में है. तो क्या रूस का यह आक्रामक मुद्रा सिर्फ धौंस है या फिर पुतिन यूक्रेन पर हमले को लेकर वाकई गंभीर हैं? इस हमले को लेकर पुतिन के दिमाग में क्या चल रहा है? हाल ही में जुलाई, 2021 में रूसी राष्ट्रपति ने एक आलेख लिखा था जिसमें उन्होंने रूस और यूक्रेन को एक करार दिया था और यूक्रेन को रूस का हिस्सा बताते हुए एक संपूर्ण बताया था. उन्होंने रूस और यूक्रेन के बीच दीवार बनाने के लिए विभाजनकारी ताकतों को जिम्मेदार ठहराया. फिर उन्होंने एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य दिया कि क्यों यूक्रेन को रूस से अलग देश नहीं होना चाहिए. विश्लेषकों का कहना है कि पुतिन चाहते हैं कि रूस की परिधि के सभी देश रूस समर्थक हों और यही कारण है कि यूक्रेनी सरकार द्वारा पश्चिम के नेतृत्व वाले नाटो गठबंधन के प्रति किए गए प्रस्तावों ने उन्हें नाराज कर दिया. सीआईए के रूसी कार्यक्रम के पूर्व प्रमुख जॉन सिफर ने सीएनएन को बताया, रूस चाहता है कि उसकी विरासत अतीत के जार या सोवियत संघ के प्रमुखों की तरह हो. पुतिन रूस को एक ऐसे स्तर पर ले जाना चाहते हैं जहां विश्व मंच पर उसका डर, सम्मान और गंभीरता से व्यवहार किया जाता हो. उन्होंने कहा कि पुतिन चाहते हैं कि लोग रूस आएं और अपनी समस्याओं का समाधान कराएं और यही वजह है कि केजीबी के पूर्व अधिकारी अपनी ताकत झोंक रहे हैं. इस बीच, मास्को ने अपने पश्चिमी पड़ोसी पर हमला करने की योजना से इनकार किया है, लेकिन यह गारंटी की मांग कर रहा है कि यूक्रेन कभी नाटो में शामिल नहीं होगा और पश्चिमी गठबंधन पूर्वी यूरोप से सेना को हटा देगा. हालांकि, पश्चिम ने इन मांगों को मानने से इनकार कर दिया है.
1991 में सोवियत संघ से अलग हुआ था रूस :
वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन को स्वतंत्रता मिली थी. उसके बाद से यह पश्चिमी यूरोप के साथ करीबी रिश्ते बनाना चाहता है मगर रूस को लगता है कि यूक्रेन का पश्चिम के पाले में जाना उसके लिए ठीक नहीं होगा. यही कारण है कि यूक्रेन पश्चिम और रूस की खींचतान के बीच फंसा हुआ है.