
world refugee day : कैसे और कौन बनता है रिफ्यूजी आइये जाने इनके बारे में
world refugee day (पंजाब 365 न्यूज़ ) : यह दिवस शरणार्थियों की दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने और उनकी समस्याओं को हल करने के प्रति जागरूकता बढ़ाने हेतु मनाया जाता है।दुनियाभर में शरणार्थियों के साहस और शक्ति को सम्मानित करने के लिए हर साल 20 जून को वर्ल्ड रिफ्यूजी डे मनाया जाता है।शरणार्थी वो लोग होते हैं जिन्हे युद्ध, उत्पीड़न या प्राकृतिक आपदा से बचने के लिए अपने देश को छोड़ने के लिए मजबूर हैं। हर साल, दुनिया भर में लाखों नए जीवन की तलाश में कहीं सुरक्षित रहने के लिए दूसरे देश शरण कि तलाश में भागते हैं। इनमें से लाखों बच्चे भी हैं। यूएनआरए के अनुसार, दुनिया भर में 1 लाख 70 हजार से अधिक बच्चे बिना माता-पिता के हैं और बिना किसी गार्डियन के संरक्षण के बिना ही यात्रा कर रहे हैं।शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 के अंत तक 8.24 करोड़ लोग जबरन विस्थापित किए गए। प्राकृतिक आपदाओं के कारण या फिर युद्ध में हिंसा का शिकार होने से बचने के लिए इन लोगों को अपने घर से दूर यात्रा करनी होती है. ये शरणार्थी सुरक्षित स्थान की तलाश में लंबी दूरी की यात्रा पर अपना सब कुछ छोड़ कर निकल पड़ते हैं और नए सिरे से जीवन जीने की कोशिश करते हैं. इस दिन को मानने का उद्देश्य शरणार्थियों की पीड़ाओं और स्थितियों को समझने के साथ उनकी भावनाओं को समझने का प्रयास करना भी है जो ज्यादातर अपना जीवन एक नए देश में शुरु करते हैं जो उनके लिए पूरी तरह से अनजान होता है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया में 20 लोगों को हर मिनट में किसी उत्पीड़न, दहशत या युद्ध केकारण अपने घरों को छोड़ना पड़ता है. शरणार्थियों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 1951 और 1967 को नियम बनाए थे. हर शरणार्थी को यह हक है कि उसकी जबर्दस्ती वापस भेजने से रक्षा की जाए।
हर किसी की ख्वाहिश होती ही अपने घर की :
दुनिया के हर इंसान की ख्वाहिश होती है कि अपना घर हो लेकिन सोचिए घर होते हुए भी छिन जाए तो कैसा महसूस होगा। इस वक्त विश्व में 4 करोड़ बेघर लोग ही इस दर्द को समझ सकते हैं। आपको बता दें कि विश्व में 57 प्रतिशत रिफ्यूजी यानी शरणार्थी हैं जो मुख्यता दक्षिण सूडान, अफगानिस्तान और सीरिया से आते हैं। प्रतिवर्ष 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जाता है। युद्ध, उत्पीड़न या प्राकृतिक आपदा से सुरक्षित रहने के लिए हर साल लाखों लोग अपने घरों से भागने को मजबूर होते हैं। जिन लोगों को अपना देश छोड़ना पड़ता है, उन्हें शरणार्थी कहा जाता है और अंतर्राष्ट्रीय विश्व शरणार्थी दिवस का उद्देश्य इस मुद्दे के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। जिससे दुनिया भर के करोड़ों- लाखों लोग प्रभावित हैं। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के आंकड़े बताते हैं कि हर मिनट, लगभग 25 लोगों को सुरक्षित जीवन की तलाश में सब कुछ पीछे छोड़ना पड़ता है।
एक बार जब कई शरणार्थी कहीं सुरक्षित पहुंच जाते हैं, तो वे उस जगह के शरणार्थी बन सकते हैं या शरण लेने वाले देश में रहने के लिए विशेष अनुमति मांग सकते हैं। ऐसा करने से उन्हें शरण मिल जाती है। एक शरण लेने वाला एक व्यक्ति अपने देश से जान बचाकर दूसरे देश में प्रवेश करता है और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के अधिकार और उस देश में रहने के लिए आवेदन करता है।
इतने लोग जबरन किये गए बिस्थापित :
यूएनएचसीआर की वार्षिक ग्लोबल ट्रेंड्स रिपोर्ट 19 जून 2018 को जारी की गई जो ये बताती है कि 2017 के अंत में दुनिया भर में 6 करोड़ 85 लाख लोगों को जबरन विस्थापित किया गया था।उसी वर्ष के दौरान 1 करोड़ 62 लाख और लोग विस्थापित हुए थे। दिन के हर मिनट में 31 लोग विस्थापित होते हैं। दुनिया के 52 प्रतिशत शरणार्थी और विस्थापित बच्चे ही हैं। ज्यादातर विकासशील देश के लोग प्रभावित हैं।
शरणार्थी उन्हें कहा जाता है, जिन्हें युद्ध, प्रताड़ना, संघर्ष और हिंसा की वज़ह से अपना देश छोड़कर अन्यत्र पलायन करने पर मजबूर होना पड़ता है।
दिसंबर 2000 में संयुक्त राष्ट्र ने अफ्रीका शरणार्थी दिवस यानी 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था और वर्ष 2001 से प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाता है।
संयुक्त राष्ट्र की संस्था United Nations High Commissioner for Refugees (UNHCR) शरणार्थियों की सहायता करने के लिये ही बनी है।
इस वर्ष इस दिवस की थीम : #StepWithRefugees—Take A Step on World Refugee Day रखी गई है।