
जानिए क्या है शरीयत कानून जो अब अफगानिस्तान में होगा लागु
अफगानिस्तान (पंजाब 365 न्यूज़ ) : तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्ज़े के बाद वहां की जनता डर के साये में जी रही है। वहां की जनता ने जो अपना राष्ट्रपति चुना था वो भी कब्ज़े क एक दिन पहले ही वहां से भाग गया था। अब अफगानिस्तान पर पूरी तरह तालिबान का कब्ज़ा है और अब अफगानिस्तान में तालिबान के ही कानून लागु होंगे। जानकारी के मुताबिक अब अफगानिस्तान में शरीयत कानून लागु होगा। जिसका अर्थ है जिसे शरीया क़ानून और इस्लामी क़ानून भी कहा जाता है, इस्लाम में धार्मिक क़ानून का नाम है। इस क़ानून की परिभाषा दो स्रोतों से होती है। पहली इस्लाम का धर्मग्रन्थ क़ुरआन है और दूसरा इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद द्वारा दी गई मिसालें हैं (जिन्हें सुन्नाह कहा जाता है)।
शरिया को केवल कानून कहना या समझना बहुत बडी अनभिज्ञता है। शरिया में मानव के लगभग सभी कार्यों को स्थान दिया गया है। शरिया में पैगम्बर मुहम्मद की, इस्लाम की, और कुरान की आलोचना को कड़ाई से निषिद्ध किया गया है। इसमें जिहाद के बारे में और जिहाद की परिभाषा दी गयी है। शरिया के अनुसार तब तक जिहाद जारी रखना चाहिए जब तक पूरा विश्व शरिया की शरण में न आ जाय (शरिया के अनुसार न चलना शुरू कर दे)। शरिया के अनुसार सभी काफिर और अ-मुसलमानों को धिम्मी बनाना है।
तालिबान पुलिस ने शरिया के स्थानीय अर्थ का उल्लंघन करने के लिए अपराधी को पीटा (महिला ने अपना चेहरा खोला था और उसे विदेशियों को दिखाया था, यही उसका अपराध था)।
मुसलमान यह तो मानते हैं कि शरीयत अल्लाह का कानून है लेकिन उनमें इस बात को लेकर बहुत अन्तर है कि यह कानून कैसे परिभाषित और लागू होना चाहिए। सुन्नी समुदाय में चार भिन्न फ़िक़्ह के नजरिये हैं और शिया समुदाय में दो। अलग देशों, समुदायों और संस्कृतियों में भी शरीयत को अलग-अलग ढँगों से समझा जाता है। शरीयत के अनुसार न्याय करने वाले पारम्परिक न्यायाधीशों को ‘काज़ी’ कहा जाता है। कुछ स्थानों पर ‘इमाम’ भी न्यायाधीशों का काम करते हैं लेकिन अन्य जगहों पर उनका काम केवल अध्ययन करना-कराना और पान्थिक नेता होना है इस्लाम के अनुयायियों के लिए शरीयत इस्लामी समाज में रहने के तौर-तरीकों, नियमों के रूप में कानून की भूमिका निभाता है। पूरा इस्लामी समाज इसी शरीयत कानून या शरीयत कानून के अनुसार से चलता है।
आपको बता दे की तालिबान ने महिलाओं को शर्तों के साथ सरकारी नौकरी, निजी सेक्टर एवं अन्य रोजगारों में काम करने की अनुमति दी है। तालिबान का कहना है कि महिलाएं कामकाज के लिए निकल सकती हैं, लेकिन उन्हें शरीयत के नियमों का पूरा पालन करना ही होगा। हालांकि तालिबान का यह रवैया भी उसके पुराने दौर के मुकाबले काफी उदार कहा जा सकता है। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 11 सितंबर, 2001 को हुए हमले से पहले अफगानिस्तान में उसकी सरकार थी। तब महिलाओं पर कड़ी पाबंदियां लागू थीं। यहां तक कि उन्हें मामूली गलतियों पर भी कोड़े खाने जैसी बर्बर सजाएं झेलनी पड़ती थीं।
महिलाये यहाँ चाहे करे काम लेकिन करे शरीयत कानून का पालन :
तालिबान के एक नेता ने नाम उजागर न करने की शर्त पर ब्लूमबर्ग से बातचीत में कहा कि महिलाएं जहां भी चाहें काम कर सकती हैं, लेकिन शरिया कानून का पालन करना होगा। इससे पहले तालिबान ने सरकारी कर्मचारियों से अपील की थी कि वे काम पर लौट आएं और उन्हें किसी भी तरह का खतरा नहीं होगा। इसके अलावा उन्होंने महिला कर्मचारियों से भी वापस लौटने की बात कही है। तालिबान के सांस्कृतिक आयोग ने कहा कि महिलाएं पीड़ित नहीं रह सकतीं। अमेरिका समेत कई देशों ने तालिबान से अपील की है कि वे महिलाओं के साथ बर्बरता से पेश न आएं।
इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र की ओर से भी ऐसी ही मांग की गई है। इसके अलावा खुद तालिबान भी 20 साल के संघर्ष के बाद सत्ता में लौटा है और वह दुनिया के सामने अपनी अपेक्षाकृत उदार छवि पेश करना चाहता है। इससे पहले 1996 से 2001 के दौरान तालिबान ने बेहद कट्टर शासन किया था और शरिया नियमों को सख्ती के साथ लागू किया जाता था। तब महिलाओं को घर से बाहर काम करने की परमिशन नहीं थी। इसके अलावा वे स्कूलों और कॉलेजों में भी नहीं जा सकती थीं। यदि उन्हें बाहर निकलना है तो फिर किसी पुरुष साथी का संग रहना और बुर्का पहनना जरूरी होता था। ऐसा न करने पर महिलाओं को पत्थरों से मारने और फांसी तक देने की सजाएं दी जाती थीं।
तालिबान की सोच कट्टरपंथी और रूढ़िवादी है, लिहाजा आश्वासन के बाद भी लोगों का मानना है कि तालिबान का शासन हिंसक और दमनकारी होगा। कल जब तालिबान के नेता महिलाओं को अधिकार देने की बात कर रहे थे, उस वक्त भी तालिबान के लोगों ने एक महिला को हिजाब नहीं पहनने की वजह से गोली मारकर हत्या कर दी। ऐसे में सवाल उठता है कि तालिबान को किसी की हत्या करने का अधिकार का शरिया कानून के तहत मिल जाता है? अगर आपको लगता है कि तालिबान सुधर गया है या बदल गया है, तो जान लीजिए पिछली बार अफगान महिलाओं के पास क्या अधिकार हासिल थे।
शरिया कानून इस्लाम की कानूनी प्रणाली है, जो कुरान और इस्लामी विद्वानों के फैसलों पर आधारित है, और मुसलमानों की दिनचर्या के लिए एक आचार संहिता के रूप में कार्य करता है। ये कानून यह सुनिश्चित करता है कि वे (मुसलमान) जीवन के सभी क्षेत्रों में दैनिक दिनचर्या से लेकर व्यक्तिगत तक खुदा की इच्छाओं का पालन करते हैं। अरबी में शरीयत का अर्थ वास्तव में “रास्ता” है और यह कानून के एक निकाय का उल्लेख नहीं करता है। शरिया कानून मूल रूप से कुरान और सुन्ना की शिक्षाओं पर निर्भर करता है, जिसमें पैगंबर मोहम्मद की बातें, शिक्षाएं और अभ्यास के बारे में लिखा है। शरिया कानून मुसलमानों के जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर सकता है, लेकिन, यह इस बात पर निर्भर
करता है कि इसका कितनी सख्ती से पालन किया जाता है।
1996 से 2001 तक अपने शासन के दौरान शरिया कानून के अत्ंयत सख्त नियम को लागू करने के लिए तालिबान की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा की गई, जिसमें सार्वजनिक पत्थरबाजी, कोड़े मारना, फांसी देकर किसी को बीच बाजार लटका देना तक शामिल था। शरिया कानून के तहत तालिबान ने देश में किसी भी प्रकार की गीत-संगीत को बैन कर दिया था। इस बार भी कंधार रेडियो स्टेशन पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने गीत बजाने पर पाबंदी लगा दी है। वहीं, पिछली बार चोरी करने वालों के हाथ काट लिए जाते थे। इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, शरिया कानून का हवाला देकर तालिबान ने अफगानिस्तान में बड़े नरसंहार किए। वहीं, करीब एक लाख 60 हजार लोगों को भूखा रखने के लिए उनका अनाज जला दिया गया औऱ उनके खेतों में आग लगा दी गई थी। तालिबान के शासन के तहत, पेंटिंग, फोटोग्राफी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, वहीं किसी भी तरह की फिल्म पर भी प्रतिबंध था।
काउंसिल ऑफ फॉरेन रिलेशंस के स्टीवन ए कुक के मुताबिक, “शरिया का वास्तव में क्या मतलब है, इसकी कई अलग-अलग व्याख्याएं हैं कि कुछ जगहों पर इसे अपेक्षाकृत आसानी से राजनीतिक प्रणालियों में इसे शामिल किया गया है।” कुछ संगठनों ने शरिया कानून के तहत ‘अंग-भंग और पत्थरबाजी’ को भी सही ठहराया है और इस कानून के तहत क्रूर सजाओं के साथ-साथ विरासत, पहनावा और महिलाओं से सारी स्वतंत्रता छीन लेने को भी जायज ठहराया है। इसकी व्याख्या और लागू करने का तरीका अलग अलग मुस्लिम देशों में अलग अलग तरीकों से किया गया है। वहीं, पाकिस्तान जैसे मुस्लिम राष्ट्र में शरिया कानून लागू नहीं है। शरिया कानून के तहत किसी अपराध के लिए तीन तरह की सजा के बारे में लिखा गया है।
तालिबान के पिछले शासनकाल के दौरान अखबारों को सख्त हिदायत दी गई थी कि वो महिलाओं की तस्वीर नहीं छाप सकते हैं। वहीं दुकानों में भी महिलाओं की तस्वीर लगाना प्रतिबंधित था। इसके साथ ही जिन दुकानों के नाम में ‘महिला’ शब्द आ रहा था, उन दुकानों से ऐसे शब्द हटा दिए गये थे। तालिबान के पिछले शासनकाल में महिलाओं का सड़क पर निकलना, रेडियो पर बोलना और टीवी पर दिखना सख्त तौर पर प्रतिबंधित था। इसके साथ ही महिलाएं सार्वजनिक कार्यक्रम में भी हिस्सा नहीं ले सकतीं थीं। अगर कोई महिला को इन नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया जाता था, तो फिर उन्हें भीड़ बुलाकर, स्टेडियम में या फिर शहर के टाउन हॉल में कोड़े से पिटाई की जाती थी।
तालिबान ने हाल के सालों में खुद को अधिक उदारवादी ताकत के रूप में पेश करने की कोशिश की है। उसने महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करने, उनके खिलाफ लड़ने वालों को माफ करने और अफगानिस्तान को आतंकी हमलों के लिए आधार के रूप में इस्तेमाल करने से रोकने का वादा किया है। इस आतंकवादी समूह ने कहा है, कि वह चाहता है कि “दुनिया हम पर भरोसा करे” और देश का नियंत्रण हासिल करने के बाद अफगानिस्तान में तालिबान किसी से ‘बदला’ नहीं लेगा। तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने स्काई न्यूज को बताया कि अफगानिस्तान में महिलाओं को काम करने और विश्वविद्यालय स्तर तक शिक्षित होने का अधिकार होगा। हालांकि, तालिबान ने वादे जरूर किए हैं, लेकिन अफगानिस्तान के लोगों का मानना है कि तालिबान झूठे वादे कर रहा है और अफगानिस्तान से विदेशी मीडिया के निकलने के बाद फिर से पुरानी स्थिति होगी।